‘भीष्म प्रतिज्ञा’ के बारें में सब जानते होंगे। यह एक किवदंती है। यह किवदंती महाभारत के पात्र भीष्म पितामह की वजह से मशहूर हुई है। भीष्म पितामह अपनी अटल प्रतिज्ञा के लिए जाने जाते थे। उन्होंने अपनी जिंदगी में कभी शादी नहीं की लेकिन उन्होंने कन्या के विवाह के संबंध कई सारी बाते बताई जिसे एक माता-पिता को अपनी बेटी का ब्याह करते वक़्त ध्यान रखना चाहिए।
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार हर मनुष्य को अपने पूरे जीवन में 16 संस्कारों को निभाना पड़ता है। कुछ संस्कार उसके माता-पिता उसके जन्म से पहले निभाते हैं या कुछ वह स्वयं निभाता है। बाकी कुछ संस्कार उसके मरने के बाद उसके बच्चे निभाते हैं। माँ के गर्भ में पलने से लेकर चिता में जलने या कब्र में जाने तक के संस्कार बहुत ही महत्व रखते हैं।
मनुष्य के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार ‘विवाह’ होता है। धार्मिक और सामाजक रूप से इस संस्कार की बहुत ज्यादा महत्वता है। इसे वर-वधू का दूसरा जन्म भी कहा जाता है।
जितना महत्वपूर्ण यह संस्कार वर-वधू के लिए होता है उतना ही महत्वपूर्ण यह उनके माता-पिता के लिए भी होता है। वर-वधू के माता-पिता के लिए भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर से कुछ नियम साझा किये थे। जो आज भी प्रसांगिक है। आइये इसके बारें में विस्तार से जानते हैं।
माता-पिता को अपनी कन्या का विवाह करते समय वर का व्यवहार, चरित्र, विद्या, आचरण और पारिवारिक पृष्ठभूमि को जांच लेना चाहिए। इस सभी चीज़ों से संतुष्ट होने के बाद ही माँ-बाप को अपनी कन्या का कन्यादान करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार जब भी वर के लिए कोई कन्या ढूंढे तो वह कन्या वर के माता के परिवार और पिता के गोत्र की नहीं होनी चाहिए।
गंधर्व विवाह उसे कहते हैं जब कन्या अपनी पसंद के वर से शादी करती है अर्थात बिना माता-पिता की अनुमति से। प्राचीन समय में इसे गंधर्व विवाह कहा जाता था लेकिन आज के समय में इस विवाह को ‘लव मैरिज’ कहा जाता है।
हिन्दू धर्म में कन्या की बिदाई के समय उसके माता-पिता उसे उपहार और जरूरी सामान देते हैं। लेकिन जब वर का परिवार कन्या के परिवार को धन या सोने का लालच देकर उनकी पुत्री से अपने पुत्र का विवाह करता है तो यह असुर विवाह कहलाता है।
जो विवाह कन्या की मर्जी के विरुद्ध, उसके माँ-बाप और अन्य रिश्तेदारों को कष्ट पहुंचाकर किया जाता है उसे राक्षस विवाह कहा जाता है। राक्षस विवाह करने से पाप लगता है।
जब माँ-बाप अपनी कन्या वर पक्ष को देते हैं तो यह कन्या दान कहलाता है। किसी स्वयंवर में कन्या को जीतकर लाना, उसे खरीदना या बेचना कन्या दान नहीं कहलाता है।
पाणिग्रह संस्कार होने पर ही कन्या विवाहित मानी जाती है। अगर कन्या का पिता पाणिग्रह से पहले अपनी पुत्री का हाथ किसी और को दे देता है तो यह पाप की श्रेणी में न आकर झूठ कहलाता है।
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