हम सब समाज में औरतों की स्थिति के बारें में बात करते हैं लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि औरतों के अलावा भी इंसान है जिसकी स्थिति समाज में उनसे भी ज्यादा ख़राब है। वह इंसान है किन्नर। पुरुषों और औरतों की दुनिया से किन्नरों की दुनिया बिल्कुल अलग होती है। आमतौर पर समाज में किन्नरों को तुच्छ माना जाता है। भले ही वह लोगों को ख़ुशी के मौके पर दुआ देते हैं लेकिन उनको इज़्ज़त शायद ही मिलती है।
समाज में किन्नरों को लेकर बहुत सारी अवधारणाएं है जिसे लेकर आम लोग अपरिचित है। किन्नरों में कई सारी प्रथाएं है जो बहुत ही अजीब है और चौकाने वाली हैं आइये आज इसी के बारें में जानते हैं।
क्या आपको पता है किन्नरों की शवयात्रा रात में ही क्यों निकाली जाती है? इसके पीछे एक मान्यता है, कहा जाता है कि अगर किन्नर का शव किसी ने देख लिया तो उसका अगला जन्म किन्नर के रूप में होगा। किन्नरों की धर्म यात्रा अन्य धर्मों के दाह-संस्कार से अलग होती है। आम आदमी कोई किन्नर का शव ले जाते हुए न देखें इसलिए शवयात्रा रात में निकाली जाती है।
यह सुनने में जरूर अजीब लगेगा लेकिन यह सच है कि किन्नर की लाश को किंन्नरों द्वारा जूतों और चप्पलों से पीटा जाता है। कहा जाता है इससे उसके उस जन्म के पापों का प्रायश्चित हो जाता है। एक मान्यता यह है कि अगर शव को जूतों-चप्पलों से पीटा जाए तो अगले जन्म में वे साधारण इंसान बनकर पैदा होंगे क्योंकि उनकी आत्मा को लगेगा यह शरीर उनके लिए एक पाप की तरह था। यही कारण है शव को जूतों-चप्पलों से पीटा जाता है।
जब भी कोई किन्नर मरता है तो उसके शव को दफनाया जाता है। आपको जानकार हैरानी होगी जब कोई किन्नर मरता है तो उसकी मौत का शोक नहीं मनाया जाता है। वैसे तो किन्नर हिन्दू धर्म को मानते हैं लेकिन शव को फिर भी दफनाया जाता है।
जी हाँ, किन्नरों के भी भगवान होते हैं। उन्हें इरावन या अरावन के नाम से जाना जाता है। इरावन अर्जुन और नाग कन्या की संतान है। महाभारत में अरावन की कहानी उद्घृत है। किन्नर हर साल अपने भगवान से शादी करते हैं। हर कोई किन्नर दुल्हन बनता है और विवाह के अगले दिन वह इरावन देवता की मूर्ति को पूरे शहर में घुमाते है। इसके बाद उनकी मूर्ति को तोड़ देते है। इसके बाद किन्नर अपना श्रृंगार उतारकर शोक मनाते हैं और विधवा की तरह रोते हैं।
इरावन देवता के बारें में महाभारत में बताया गया है। युद्ध के दौरान पांडवों को माता काली की पूजा के लिए एक राजकुमार की बलि देनी थी। बलि के लिए कई राजकुमारों को पूछा गया लेकिन कोई तैयार न हुआ। फिर इरावन ने कहा की वह बलि चढ़ेंगे। लेकिन इरावन ने बलि चढ़ने से पहले एक शर्त रख दी कि वह तभी बलि चढ़ेंगे जब उनकी शादी हो जाएगी।
इसके बाद समस्या का समाधान भगवान श्रीकृष्ण ने किया। श्रीकृष्ण खुद मोहिनी का रूप धारण करके आये और इरावन से शादी कर ली। शादी के अगले दिन इरावन की बलि दे दी गयी। इसी प्रथा को किन्नर आज भी निभाते है।
कभी भी किन्नरों के घर का भोजन नहीं करना चाहिए। इसके बारें में गरुण पुराण में बताया गया है। किन्नरों को दान करना शुभ माना जाता है। इसलिए उन्हें अच्छा-बुरा सभी आदमी दान करते हैं इसलिए यह पता लगाना मुश्किल होता है जिस भोजन को ग्रहण किया जा रहा है वह किसके घर का है। यही कारण है कि किन्नरों के गहर पर खाना नहीं खाना चाहिए।
कहा जाता है कि पिछले जन्म के पापों की वजह से इंसान किन्नर के रूप में जन्म लेता है। ज्योतिष शास्त्र में कई ग्रह और योग बताए गए हैं जब किन्नरों का जन्म होता है। किन्नर के रूप में जन्म लेना श्राप से पाया हुआ जीवन कहा जाता है। उपरोक्त दोनों कारणों के बारें में पुख्ता सबूत यह है कि अर्जुन श्राप के कारण किन्नर बने थे और शिखंडी अपने पूर्व जन्म के कर्मों के कारण किन्नर बने थे।
इसके अलावा किन्नर के जन्मने में शनि की बहुत भूमिका होती है। किन्नरों की उत्पत्ति ब्रह्मा की परछाई से हुई थी। यह भी कहा जाता है कि अरिष्टा और कश्यप ऋषि से किन्नरों की उत्पत्ति हुई थी।
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