भारतीय सेना से जुड़े कई ऐसे नियम है जिनके बारें में आम नागरिक नहीं जानते हैं। सेना के कुछ अपने उसूल और बाध्यताएं होती है जिसकी वजह से वह सेना की अंदरूनी बातों को पब्लिक में नहीं बताते हैं। ऐसा ही एक नियम है जब कोई स्निफर डॉग रिटायर होता है तो सेना उसे गो’ली मार देती है। यह सुनने में थोड़ा नृशंस लगता है लेकिन ऐसा करने के पीछे कारण होता है। आइये इस बारें में विस्तार से जानते हैं।
सेना जिन कुत्तों को ट्रेनिंग देकर सेना में शामिल करती हैं उन्हें ‘स्निफर डॉग’ कहा जाता है। हालांकि यह सर्वज्ञात है कि कुत्ते सबसे वफादार जानवर होते हैं। आदमी एक बार गद्दारी कर सकते हैं लेकिन कुत्ते नहीं। फिर ऐसा क्यों होता है कि अपने ही सिखाए गए कुत्तों को रिटायर होने के बाद सेना मार देती है। एक RTI के सवाल में भारतीय सेना ने इसका जवाब दिया है।
सुरक्षा की दृष्टि से किया जाता है ऐसा
भारतीय सेना ने बताया है कि इन कुत्तों को ट्रेंड किया गया होता है। यह करीब 8 से 10 साल तक देश की सेवा करते है। इनको सुरक्षा की दृष्टि से रिटायर होने के बाद मार दिया जाता है। क्योकि इन्हे सेना के कैंपस, ठिकाने और बेस के बारें में जानकारी होती है और अगर यही कुत्ते किसी गलत आदमी के हाथ लग गए तो यह बहुत खतरनाक साबित हो सकता है। देश और सेना से जुड़ी कोई भी जानकारी लीक न हो इसलिये इन कुत्तों को रिटायर होने के मार दिया जाता है।
सेना ने यह भी बताया है कि अगर ये कुत्ते बीमार हो जाते हैं और ये 1 महीने में ठीक नहीं होते है तो सेना के लोग इन्हें मार देते हैं। क्योंकि सेना नहीं चाहती है कि जिसने देश के लिए अपनी सेवा दी है वह बाद में कोई कष्ट सहे। इन स्निफर डॉग्स को तब तक जीवित रखा जाता है जब तक यह रिटायर या बीमार नहीं होते है। इन कुत्तों को सर्विस के बाद देखभाल करना भी काफी महंगा होता है।
सैनिक की तरह किया जाता है अंतिम संस्कार
इस बात से जाहिर होता है कि सेना इन कुत्तों को सुरक्षा की दृष्टि से मारती है। जब भी कोई स्निफर डॉग मारा जाता है तो उसे तोपों की सलामी दी जाती है और बाकायदा एक सैनिक की तरह अंतिम संस्कार किया जाता है। वर्तमान में भारतीय सेना में लगभग 1200 प्रशिक्षित स्निफर डॉग हैं।
ये मुख्य रूप से विदेशी नस्ल के जर्मन शेफर्ड, लैब्राडोर, बेल्जियम शेफर्ड और ग्रेट स्विस माउंटेन डॉग हैं जिन्हें रेमाउंट और वेटरनरी कोर (RVC) द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है इसके अलावा अब सेना मुधोल हाउंड के रूप में जानी जाने वाली स्वदेशी कुत्ते की नस्ल को भी सेना में शामिल कर रही है।
सबसे पसंदीदा आर्मी डॉग जर्मन शेफर्ड और लैब्राडोर के प्रजाति के होते हैं क्योंकि ये किसी भी कंडीशन में किसी भी चीज़ को बहुत आसानी और जल्दी से सीख लेते हैं। हालाँकि कई बार देखा गया है एनिमल एक्टिविस्ट सेना द्वारा कुत्तों के मारने के कदम का विरोध करते रहें है। सेना उन्हें देश की सुरक्षा का हवाला देकर इसे देश के लिए जरूरी बताती है। यह भारत में ही नहीं होता है बल्कि हर देश के ट्रेंड कुत्तों के साथ ऐसा ही होता है।
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