पुलिस का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में सबसे पहले जो तस्वीर उभरती है वह है ख़ाकी रंग। ख़ाकी सुरक्षा का एक प्रतीक मानी जाती है। इस रंग को पुलिसकर्मी अपनी वर्दी के तौर पर धारण करते हैं। पुलिस की पहचान ख़ाकी रंग से की जाती है। क्या कभी आप ने सोचा है कि आखिर पुलिस वर्दी का रंग खाकी ही क्यों होता है ? अगर नहीं पता तो आइये इस बारें में विस्तार से जानते हैं
प्रशासन के हर विभाग का अपना नियम और कायदा होता है जिसके अनुसार वह काम करते हैं। पुलिस महकमा जनता की सेवा के लिहाज से प्रशासन का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। यह हमारे देश की सेना और पुलिस ही है जिसकी वजह से हम रात में चैन से सो पाते हैं। सामान्य कर्मचारी की त्यौहार और छुट्टियों के दिनों में अवकाश रहता है लेकिन पुलिस का नहीं।
पुलिस विभाग में ख़ाकी रंग भी कहीं-कहीं बदला नज़र आता है। बड़े पद वाले अफसर की वर्दी थोड़ा गहरे ख़ाकी रंग की होती है, जबकि अन्य पुलिस अफसर की वर्दी थोड़ा हलके ख़ाकी रंग की होती है, लेकिन ओवरआल रंग मटमैले कलर (ख़ाकी) का ही होता है।
ब्रिटिश काल में सफ़ेद रंग की वर्दी पहनती थी पुलिस :
ख़ाकी रंग का प्रचलन ब्रिटिश काल से ही चलता आ रहा है। ब्रिटिश काल में जब पुलिस का गठन हुआ, तो पुलिस सफ़ेद रंग की वर्दी पहनती थी। लेकिन देर तक ड्यूटी करने की वजह से यह जल्दी ही गन्दी हो जाती थी। जिसकी वजह से पुलिसकर्मी बहुत परेशान रहते थे। दूसरी बात यह है कि जो वर्दी इनकी पहचान है, उसी का गन्दा होना अनुशासन और शर्म के दायरे में भी आता है। ऐसे में गंदगी को छुपाने के लिए पुलिस ने उस दौर में वर्दी को अलग-अलग रंगों से रंगना शुरू कर दिया।
अलग-अलग रंगों से रंगने के कारण सभी पुलिसवालों की वर्दी रंग-बिरंगी दिखायी देने लगी। नतीजा यह हुआ कि एक ही जगह पर पुलिस के जवानों की वर्दी अलग-अलग दिखने लगी। यह समस्या खड़ी हो गयी।
इससे बचने के लिए पुलिस के अफसरों ने ख़ाकी रंग की एक डाई तैयार करवाई। इस डाई में हल्का पीला और भूरे रंग का मिश्रण होता है। जब अफसर अपनी वर्दी को डाई में रंगवाने लगे तो अन्य पुलिसवाले भी चाय की पत्ती और कॉटन फैब्रिक कलर डाई में वर्दी रंगवाने लगे।
1847 ख़ाकी हो गयी आधिकारिक :
जब सभी पुलिसवाले अपनी वर्दी का रंग खुद ख़ाकी रंग में रंगने लगे तो महकमे ने ख़ाकी रंग को 1847 में पुलिस के लिए आधिकारिक कर दिया। सर हैरी लम्सडेन द्वारा वर्दी को ख़ाकी में करने का प्रस्ताव 1847 में लाया गया था। सर हैरी लम्सडेन सर हेनरी लॉरेंस के Corps of Guides नामक बनायीं गयी फ़ोर्स में कमान्डेंट थे।
इस फ़ोर्स के जवान शुरू में लोकल पुलिस की ड्रेस में ही ड्यूटी करते थे। सर हैरी लम्सडेन के प्रस्ताव से फिर ख़ाकी पुलिस वर्दी के लिए अनिवार्य हो गयी। तब से लेकर अब तक पुलिस विभाग में ख़ाकी वर्दी ही उपयोग हो रही है।
जबकि कोलकाता पुलिस की वर्दी का रंग है सफेद :
आपको बता दें कि कोलकाता में अभी भी वर्दी का रंग पुलिसवालों के लिए सफ़ेद ही है। 1847 में कोलकाता पुलिस ने लम्सडेन के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया था। कोलकाता पुलिस ने प्रस्ताव के ख़ारिज करने के पीछे एक कारण दिया था वह यह था कि कोलकाता एक तटीय शहर है जिसकी वजह से यहाँ ज्यादा गर्मी और नमी रहती है इसलिए यहाँ सफ़ेद रंग ही वैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण है।
दरअसल इसके पीछे यह कारण है की सफेद रंग की यूनिफॉर्म से सूरज की रोशनी रिफ्लेक्ट हो जाती है जिससे पुलिसकर्मियों को ज्यादा गर्मी ना लगे। बतां दे कि बंगाल पुलिस खाकी वर्दी पहनती है जबकि कोलकाता पुलिस की वर्दी का रंग सफेद है।
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