भारत की 5 महिला खिलाड़ी जिन्होंने गरीबी से निकलकर बनाई पहचान

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Inspirational Story Of Five Women Players 696x365

जब भी खेल की बात आती है तो बस जुबान पर क्रिकेट का नाम आता है। लेकिन ऐसे कई सारे खेल हैं जिसमे न केवल भारतीय लड़कों ने कमाल दिखाया है बल्कि लड़कियों ने भी परचम लहराया है। अगर बात एथलेटिक्स की हो तो भारतीय लड़कियां लड़कों पर भारी पड़ती हुई दिखाई देती है। सफलता का यह अनुपात बताता है कि भारत की लड़कियां तमाम बन्धनों को तोड़कर, मुसीबतों को हराकर और बाधाओं को लांघकर न केवल अपने माता-पिता का नाम रोशन कर रही हैं बल्कि देश का सिर भी गर्व से ऊंचा कर रही हैं।

‘दंगल’ जैसी फिल्म में हमने देखा कि एक महिला खिलाड़ी को खेल को सीखने और उसमे सफल होने के लिए किन-किन परेशानियों से होकर गुज़रना पड़ता है। असलियत में उन्हें उससे भी कई गुना ज्यादा परेशानियां लड़कियों को सहनी पड़ती है फिर वे अपने जज्बे और कौशल से खेल जगत पर अपना रुतबा कायम करती हैं। आइये आज ऐसी ही 5 लड़कियों के बारे में जानते हैं जिन्होंने अपने संघर्ष और सफलता से न केवल भारतीय लड़कियों को प्रोत्साहित किया है बल्कि विदेशों में कई लड़कियों की रोल मॉडल रही हैं।

1- हाकी प्लेयर रानी रामपाल

Ranirampal File Bhanu Prakash Chandra

भारतीय महिला हाकी टीम की कप्तान भारतीय महिला हाकी में महेंद्र सिंह धोनी जैसी हैसियत रखती हैं। उन्हें 2019 में ‘वर्ल्ड गेम्स एथलीट ऑफ़ द ईयर’ का अवार्ड भी मिला था। यह अवार्ड पाने वाली रानी पहली भारतीय हैं। इस अवार्ड के लिए उनके नाम पर 705,610 वोट के मुकाबलें 199477 वोट पड़े थे। रानी रामपाल का जन्म हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के मारकंडा गाँव में हुआ था। वह मात्र 14 साल की उम्र में भारतीय महिला की सीनियर टीम में शामिल हुई थी।

आज वह भारतीय टीम की कप्तान हैं। रानी का परिवार बहुत ही गरीब था उनके पिता परिवार का पेट पालने के लिए रिक्शा चला करके ईंटें बेचा करते थे। पिता के पास रानी की ट्रेनिंग के लिए पैसे नहीं होते थे। रानी को नंगे पाँव ही ट्रेनिगं करना पड़ता था। भारत की ओर से रानी अबतक कुल 240 मैच खेल चुकी हैं। हाल ही में उन्हें देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया गया है।

2- क्रिकेटर राधा यादव

Radha Yadav

क्रिकेट में करियर बनाना किसी के लिए भी आसान नही होता है। फिर चाहे वह लड़की हो या लड़का। राधा यादव मुंबई की कोलिवरी इलाके में 220 फूट की झुग्गी में रहा करती थी। यहाँ से लेकर टीम इंडिया तक जाने में उनका सफ़र बहतु ही संघर्ष भरा रहा है। राधा यादव भारतीय महिला क्रिकेट टीम की उभरती हुई स्टार हैं। उन्हें वर्ल्ड टी-20 में श्रीलंका के खिलाफ मैच में प्लेयर ऑफ़ द मैच चुना गया था।

राधा यादव ने 6 साल की उम्र से ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। इसकी वजह से लोग उनके पिता को ताने मारा करते थे। लोग कहा करते थे कि बेटी को इतनी छूट देना ठीक नहीं है। लेकिन उनके पिता ने इन सब बातों को दरकिनार कर उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। राधा के पिता मुंबई में दूध बेचा करते थे। वह अपने घर का गुज़ारा बहुत ही मुश्किल से कर पाते थे।

राधा ने पहले पुरानी लकड़ी के बैट से प्रैक्टिस करनी शुरू की। घर से स्टेडियम जाने के लिए उन्हें 3 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था। कभी -कभार उनके पिता स्टेडियम तक छोड़ आते थे। जब राधा क्रिकेट में सफल हुई तो उन्होंने अपने पिता के लिए अपनी कमाई से एक दुकान खरीदी।

3- एथलीट पी टी उषा

P. T. Usha

भारत में पी टी उषा का नाम दौड़ के लिए एक पर्यायवाची के रूप में प्रयोग होता है। जब भी कोई लड़की तेज दौडती हैं तो लोग कह्ते हैं कि देखो कैसे पी टी उषा की तरह दौड़ रही है। पी टी उषा अब खेल से सन्यास ले चुकी हैं। वह केरल में एक एथलीट स्कुल को चलाती हैं जहाँ पर वह बच्चों को खासकर लड़कियों को एथलीट के क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। उनका यह स्कूल बच्चों को बिना फीस के ही कोचिंग देता है।

पी टी उषा ने जब ट्रैक एंड फील्ड में अपना करियर बनाने का फैसला किया तो उनके घर की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी। उस समय के दौरान लड़कियों का स्पोर्ट्स में आना बहतु ही अचम्भे की बात समझी जाती थी। क्योंकि लड़कियों को तब बहुत सारे लांछन, फब्तियों को झेलकर मुकाम बनाना पड़ता था। उषा ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि लोग उनके घर पर पत्थर फेंका करते थे मगर उन्होंने अपने हौंसलों के सामने इन बाधाओं को नहीं आने दिया।

4- बास्केटबाल प्लेयर गीता चौहान

Geeta Chauhan

जो बच्चे अपनी शारीरिक कमजोरी और अक्षमता के कारण घुटने टेक देते हैं अन्तराष्ट्रीय बास्केटबाल प्लेयर गीता चौहान उनके लिए के प्रेरणा हैं। महज छः साल की उम्र में पोलियो के कारण अपना पैर गवाने वाली गीता ने बास्केटबाल प्लेयर बनने का सपना नहीं छोड़ा। अपने दोस्तों की मदद से उन्होंने टेक्सटाइल बिजनेस को शुरू किया। इसी दौरान उन्हें पैर बास्केटबाल में करियर बनाने का मौका दिखाई दिया।

इसके बाद उन्होंने व्हीलचेयर बास्केटबाल टीम को ज्वाइन कर लिया और खेलना शुरू किया। आज वे कई मैडल अपने नाम कर चुकी हैं। गीता का मानना हैं कि ‘ज़िन्दगी में चाहे जितनी भी मुसीबत आये कभी भी उम्मीद नहीं खोनी चाहिए।’ उनकी कहानी उन युवाओं के लिए प्रेरणा हैं जो बच्चे शारीरिक विकलांगता के कारण अपनी उम्मीद खो चुके हैं।

5- पैरा बैडमिन्टन की चैम्पियन मानसी जोशी

Manasi Girishchandra Joshi

मानसी जोशी ने न केवल अपने जज्बे से देश का नाम रोशन किया बल्कि जज्बे और कौशल का अद्भुत नमूना पेश किया। आपको बता दें कि मानसी एक सड़क हाद्सें में अपना पैर खो चुकी थी। कुछ महीने पहले उन्होंने बीडब्लूएफ वर्ल्ड चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। मानसी छः साल की उम्र से ही बैडमिन्टन खेला करती थी।

इंजीनियरिंग करने के बाद भी उन्होंने बैडमिन्टन खेलना जारी रखा और बाद में इसे अपना करियर बनाया। सड़क हादसें में पैर गवाने के बाद भी उन्होंने अपनी हिम्मत नहीं हारी। हॉस्पिटल से बाहर आने के बाद उन्होंने ठान लिया था कि उन्हें अपने इस अक्षमता के बावजूद देश का नाम रोशन करके दिखाना हैं।

भारत में बहुत सारी महिला एथलीट खिलाड़ी हैं जिनकी कहानी जानकार एक हारे हुए इंसान को प्रेरणा मिलती हैं। इससे हमे अपने क्षेत्र में लगातार बढ़ते रहने का जज्बा मिलता है। सलाम है भारत की तमाम ऐसी लड़कियों को।

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